सोचना जरूर उम्र पूरी कर सब को मरना ही है ।


मरने के बाद जलाते है क्युकीं जीव आस्था उस शरीर मे ना हो और आगे गति करे ।
तीन दिन बाद फूल अस्थि उठाकर गंगा या जल में प्रवाहित करते है कि जीव की गति कल्याण हो ।
फिर तीसरा , तेरहवां , महीना करते है कि जीव की मुक्ति हो कल्याण हो  
फिर छ: माही , श्राद्ध करते है ताकी जीव की गति हो और कल्याण हो ।

 

 

 

 

 

 


फिर भी कर्मकांडी बाह्मण यह कहे की आपका पितृ को बैठाना पडेगा तो आप शुरू से ही उल्लू बनाये गये हो ।
पुर्ण संत से भक्ति के लिये नाम दीक्षा लेकर भक्ति करी होती तो या तो सतलोक चले जाना था या वापस मनुष्य जन्म मिलता है । यह परमात्मा का सविंधान है ...
पितृ अपने पितृ के कर्मकांड कर के पितृ बने और जिस लौक में खाने की पुर्ति नही होती है वहां क्या गति और क्या सुख ...
जीवन तो जैसे तैसे निकल जायेगा पर मरने के बाद कौन सहायक होगा  इसलिये पुर्ण संत से नाम दीक्षा लेकर अपने घर परिवार मे रहकर नौकरी ड्युटी करते हुये भक्ति करीये यह संदेश स्वयं परमात्मा ने और उन के मत वाले संतो ने दिया है । 

 

 

 

 

 


कबीर , एक हरि की भक्ति करो , तज विषयो रस चौंज ।
बार बार नही पाओगे , यह मनुष्य जन्म की मौज ।।

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