18 लाख व्यक्तियों के लिए सतलोक से आए अनेकों पकवान भोजन-भंडारे के18 लाख व्यक्तियों के लिए सतलोक से आए अनेकों पकवान भोजन-भंडारे के रूप में



एक तरफ तो कबीर जी अपनी झोपड़ी में बैठे थे और दूसरी तरफ परमेश्वर कबीर जी अपनी राजधानी सतलोक में पहुँचे। वहां से केशव नाम के बंजारे का रूप धारण करके कबीर परमात्मा 9 लाख बैलों के ऊपर बोरे (थैले) रखकर उनमें पका-पकाया भोजन (खीर, पूड़ी, हलुवा, लड्डू, जलेबी, कचौरी, पकोडी, समोसे, रोटी दाल, चावल, सब्जी आदि) भरकर सतलोक से काशी नगर की ओर चल पड़े। सतलोक की हंस आत्माएं ही 9 लाख बैल बनकर आए थे। केशव रूप में कबीर परमात्मा एक तंबू में डेरा देकर बैठ गए और भंडारा शुरू हुआ। बेईमान संत तो दिन में चार-चार बार भोजन करके चारों बार दोहर तथा मोहर ले रहे थे। कुछ सूखा सीधा (चावल, खाण्ड, घी, दाल, आटा) भी ले रहे थे। यह सब देखकर शेखतकी ने तो रोने जैसी शक्ल बना ली।
उधर भण्डारा सुचारू रूप से चल रहा था। जब सिकंदर लोधी वहां पहुँचा तो उसने केशव बंजारे से पूछा कि आप कौन हैं? तो केशव रूप में कबीर साहेब ने कहा कि वे कबीर जी के मित्र हैं। केशव ने बताया कि कबीरजी ने कहा था कि काशी में एक छोटा सा भंडारा करना है। इसलिए मैं यहां आया हूं। शेखतकी ये बातें सुनकर कलेजा पकड़कर जमीन पर बैठ गया की इतने बड़े भण्डारे को छोटा-सा भण्डारा कह रहे हैं। परंतु शेखतकी के मन में ईर्ष्या अभी भी बरकरार थी। सिकंदर लोधी पूरा नजारा देखकर दंग रह गया और केशव से पूछा कबीर जी क्यों नहीं आए? केशव ने उत्तर दिया कि जब तक उनका गुलाम हाजिर है उनको तकलीफ उठाने की क्या आवश्यकता? यह भण्डारा तो तीन दिन चलना है। उनकी जब इच्छा होगी, आ जाएंगे।

यह लीला देखकर दिल्ली का राजा सिकंदर लोधी कबीर जी के चरणों में नतमस्तक हुआ।

सिकंदर लोधी कबीर जी की झोंपड़ी पर गए। दस्तक देकर कहा की है परवरदिगार! दरवाज़ा खोलिए! आपका बच्चा सिकंदर आया है। कबीर परमेश्वर जी ने कहा, हे राजन! कुछ व्यक्ति मेरे पीछे पड़े हैं। प्रतिदिन कोई न कोई नया षड़यंत्र रचकर परेशान करते हैं। मेरे पास भोजन-भण्डारा (लंगर) करवाने तथा दक्षिणा देने के लिए धन नहीं है। मैं रात्रि में परिवार सहित काशी नगर को त्यागकर कहीं दूर स्थान पर चला जाऊँगा। मैं दरवाज़ा नहीं खोलूँगा। सिकंदर सम्राट बोला, हे कादिर अल्लाह (समर्थ परमात्मा) आप मुझे नहीं बहका सकते। आपने चौपड़ के खुले स्थान पर कैसे भण्डारा लगाया है। आपका मित्र केशव आया है। अपार खाद्य सामग्री लाया है। लाखों लोग भोजन करके आपकी जय-जयकार कर रहे हैं। आपका दर्शन करना चाहते हैं। कबीर जी ने संत रविदास जी से कहा कि खोल दो किवाड़। दरवाजा खुलते ही सिकंदर राजा ने जूती उतारकर मुकुट सहित दण्डवत् प्रणाम किया।
फिर काशी में चल रहे भोजन-भण्डारे में चलने की विनय की। जब कबीर परमात्मा झोंपड़ी से बाहर निकले तो आसमान से सुगंधित फूल बरसने लगे तथा आकाश से सुंदर मुकुट आया और परमात्मा कबीर जी के सिर पर सुशोभित हुआ। सिकन्दर बादशाह ने कबीर परमेश्वर को अपने हाथी पर बिठाया और चंवर करने लगे। मेले में पहुँचे। कबीर परमेश्वर जी की जय जयकार होने लगी। कबीर परमेश्वर जी ने इस दौरान सत्संग सुनाया जो 8 पहर यानी 24 घण्टे तक चला। एक रूप में केशव प्रश्न करते और दूसरे रूप में कबीर साहेब उत्तर देते। केशव लोगों के सामने पूछते हैं, परमात्मा आप अपने नूरी प्रदेश सतलोक को जहां कोई कमी नहीं वहां से इस मलीन लोक में क्यों आये? यहां हर चीज की कमी है। यहां पैर रखने से भी पाप लगता है क्योंकि करोडों जीव मर जाते हैं।

केशव कहे कबीर से, पूछे बाता बीन।
गरीब दास क्यों उतरे, ऐसे मुल्क मलीन।।

कबीर साहेब उत्तर देते की मैं अपने बच्चों के लिए आया हूं। ये भटक गए हैं। इन्हें सत साधना बताकर इनको भी सतलोक लेकर जाऊंगा।
कबीर, गोता मारूं स्वर्ग में, जा पैठूं पाताल।
गरीब दास ढूंढता फिरूं अपने हीरे मोती लाल।।
ये अद्भुत सत्संग सुन कई लाख सन्तों ने अपनी गलत भक्ति त्यागकर कबीर जी से दीक्षा ली और अपना कल्याण कराया रूप में

एक तरफ तो कबीर जी अपनी झोपड़ी में बैठे थे और दूसरी तरफ परमेश्वर कबीर जी अपनी राजधानी सतलोक में पहुँचे। वहां से केशव नाम के बंजारे का रूप धारण करके कबीर परमात्मा 9 लाख बैलों के ऊपर बोरे (थैले) रखकर उनमें पका-पकाया भोजन (खीर, पूड़ी, हलुवा, लड्डू, जलेबी, कचौरी, पकोडी, समोसे, रोटी दाल, चावल, सब्जी आदि) भरकर सतलोक से काशी नगर की ओर चल पड़े। सतलोक की हंस आत्माएं ही 9 लाख बैल बनकर आए थे। केशव रूप में कबीर परमात्मा एक तंबू में डेरा देकर बैठ गए और भंडारा शुरू हुआ। बेईमान संत तो दिन में चार-चार बार भोजन करके चारों बार दोहर तथा मोहर ले रहे थे। कुछ सूखा सीधा (चावल, खाण्ड, घी, दाल, आटा) भी ले रहे थे। यह सब देखकर शेखतकी ने तो रोने जैसी शक्ल बना ली।
उधर भण्डारा सुचारू रूप से चल रहा था। जब सिकंदर लोधी वहां पहुँचा तो उसने केशव बंजारे से पूछा कि आप कौन हैं? तो केशव रूप में कबीर साहेब ने कहा कि वे कबीर जी के मित्र हैं। केशव ने बताया कि कबीरजी ने कहा था कि काशी में एक छोटा सा भंडारा करना है। इसलिए मैं यहां आया हूं। शेखतकी ये बातें सुनकर कलेजा पकड़कर जमीन पर बैठ गया की इतने बड़े भण्डारे को छोटा-सा भण्डारा कह रहे हैं। परंतु शेखतकी के मन में ईर्ष्या अभी भी बरकरार थी। सिकंदर लोधी पूरा नजारा देखकर दंग रह गया और केशव से पूछा कबीर जी क्यों नहीं आए? केशव ने उत्तर दिया कि जब तक उनका गुलाम हाजिर है उनको तकलीफ उठाने की क्या आवश्यकता? यह भण्डारा तो तीन दिन चलना है। उनकी जब इच्छा होगी, आ जाएंगे।

यह लीला देखकर दिल्ली का राजा सिकंदर लोधी कबीर जी के चरणों में नतमस्तक हुआ।

सिकंदर लोधी कबीर जी की झोंपड़ी पर गए। दस्तक देकर कहा की है परवरदिगार! दरवाज़ा खोलिए! आपका बच्चा सिकंदर आया है। कबीर परमेश्वर जी ने कहा, हे राजन! कुछ व्यक्ति मेरे पीछे पड़े हैं। प्रतिदिन कोई न कोई नया षड़यंत्र रचकर परेशान करते हैं। मेरे पास भोजन-भण्डारा (लंगर) करवाने तथा दक्षिणा देने के लिए धन नहीं है। मैं रात्रि में परिवार सहित काशी नगर को त्यागकर कहीं दूर स्थान पर चला जाऊँगा। मैं दरवाज़ा नहीं खोलूँगा। सिकंदर सम्राट बोला, हे कादिर अल्लाह (समर्थ परमात्मा) आप मुझे नहीं बहका सकते। आपने चौपड़ के खुले स्थान पर कैसे भण्डारा लगाया है। आपका मित्र केशव आया है। अपार खाद्य सामग्री लाया है। लाखों लोग भोजन करके आपकी जय-जयकार कर रहे हैं। आपका दर्शन करना चाहते हैं। कबीर जी ने संत रविदास जी से कहा कि खोल दो किवाड़। दरवाजा खुलते ही सिकंदर राजा ने जूती उतारकर मुकुट सहित दण्डवत् प्रणाम किया।
फिर काशी में चल रहे भोजन-भण्डारे में चलने की विनय की। जब कबीर परमात्मा झोंपड़ी से बाहर निकले तो आसमान से सुगंधित फूल बरसने लगे तथा आकाश से सुंदर मुकुट आया और परमात्मा कबीर जी के सिर पर सुशोभित हुआ। सिकन्दर बादशाह ने कबीर परमेश्वर को अपने हाथी पर बिठाया और चंवर करने लगे। मेले में पहुँचे। कबीर परमेश्वर जी की जय जयकार होने लगी। कबीर परमेश्वर जी ने इस दौरान सत्संग सुनाया जो 8 पहर यानी 24 घण्टे तक चला। एक रूप में केशव प्रश्न करते और दूसरे रूप में कबीर साहेब उत्तर देते। केशव लोगों के सामने पूछते हैं, परमात्मा आप अपने नूरी प्रदेश सतलोक को जहां कोई कमी नहीं वहां से इस मलीन लोक में क्यों आये? यहां हर चीज की कमी है। यहां पैर रखने से भी पाप लगता है क्योंकि करोडों जीव मर जाते हैं।

केशव कहे कबीर से, पूछे बाता बीन।
गरीब दास क्यों उतरे, ऐसे मुल्क मलीन।।

कबीर साहेब उत्तर देते की मैं अपने बच्चों के लिए आया हूं। ये भटक गए हैं। इन्हें सत साधना बताकर इनको भी सतलोक लेकर जाऊंगा।
कबीर, गोता मारूं स्वर्ग में, जा पैठूं पाताल।
गरीब दास ढूंढता फिरूं अपने हीरे मोती लाल।।
ये अद्भुत सत्संग सुन कई लाख सन्तों ने अपनी गलत भक्ति त्यागकर कबीर जी से दीक्षा ली और अपना कल्याण कराया

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